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वृद्धावस्था #लेखनी वार्षिक कविता प्रतियोगिता -27-Mar-2022

वृद्धावस्था
*****"****
खुद भूखे रहकर उसने कितनी रात बिताई
फटे पुराने कपड़ों की करती थी वो सिलाई।

बच्चों की हर जरूरत करती थी वो पूरी
अपनी सारी ख्वाहिशें रह गई भले अधूरी।

बिन बताए बच्चों की सब बातें जाती थी जान
क्यों न रख पाए उसके बच्चे उसका मान।

उस एक ने अकेले चार बच्चों को पाला
चारों ने उसको ही उसके घर से निकाला।

जवानी गंवाई जिन बच्चों के लिए
बुढ़ापे में कितने कष्ट उन्होंने दिए।

छोड़ आए अपनी मां को वृद्धाश्रम 
भूल गए उसके सारे परिश्रम।

आऐगी वृद्धावस्था सबको इक दिन
जो बोओगे वही मिलेगा गिन गिन।

जैसा व्यवहार करोगे अपने माता पिता से 
वैसा ही व्यवहार तुम्हारे बच्चे करेंगे तुम से।
***
कविता झा' काव्या कवि'
# लेखनी
## लेखनी वार्षिक कविता प्रतियोगिता
२७.०३.२०२२

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3 Comments

Muskan khan

29-Mar-2022 09:58 PM

बहुत ही सुंदर

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Renu

27-Mar-2022 08:50 PM

बहुत खूब

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Gunjan Kamal

27-Mar-2022 08:22 PM

बिल्कुल सही कहा आपने मैम। शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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